17

अकेलापन एक मिथक है:

Submitted by Avnish Solanki

एक कस्बे में कई सौ लोग रहते थे। सुबह-सुबह बहुत चहल-पहल, दिन को कोई नजर नहीं आता था और रात को, यह मच्छी बाजार लगता था! शहर से काफी दूर, थोड़ी ऊंचाई पर स्थित, रात को ये कस्बा, लाखों तारों की टिमटिमाती बारात सा लगता था। इन्हीं चमकते हुए तारों में, एक बुझा सा तारा भी था, 60 साल का एक वृद्ध, वो अकेला अपने घर में रहता था।

आसपास के बच्चे, बड़े, अपनी-अपनी तरह से उससे पेश आते थे। बच्चे कभी उसे दुलारते थे, तो कभी छेड़ते थे। एक दिन, एक युवक ने उस से पूछा, बाबा आप इतने सालों से अकेले रह रहे हो, आपके अलावा, आपका अपना यहां कोई नहीं है? क्या इससे आपको अकेलापन महसूस नहीं होता?

फिर वह वृद्ध अपने आप में बड़बड़ाता हुआ वहां से निकल गया। युवक काफी देर तक वहां बैठा हुआ यही सोचता रहा कि यह वृद्ध व्यक्ति मुझे क्या कह कर गया है? मुझे क्यों समझ नहीं आ रहा।

आज इस कस्बे में बहुत शोर-शराबा है। चारों ओर खुशी छाई हुई है, आज यहां शादी है, सभी आमंत्रित हैं, वो वृद्ध भी वहीं बैठा हुआ है। बारात के आगमन की शहनाई से ज्यादा, यहां के लोगों की खुशी कानों में गूंज रही थी।

काफी समय बाद किसी की शादी हो रही थी। शायद इसीलिए लोगों के पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। ऐसा पहली बार हो रहा था कि “इस तरह की” शादी में भी लोग खुश थे। ऐसा लग रहा था मानो सभी लोग मानवता का पाठ सीख चुके हों।

हां एक झुंड में कुछ औरतें खड़ी होकर यह बातें जरूर कर रही थी।

“पता नहीं बहन दुल्हन सुंदर भी है या नहीं या लड़का ऐसे ही पागल हुआ जा रहा है?”

“हां देखो, इतना बड़ा जोखिम जो उठा रहा है। मां बाप तो समझाते ही रह गए। लेकिन दूल्हे ने किसी की भी एक न सुनी। मैं तो भगवान से दुआ करती हूं  कि जो कुछ हो अच्छा ही हो  और जल्दी से ये शादी हो जाए।” 

चारों तरफ चहल-पहल, शोर शराबे के बीच, अचानक ही शहर की तरफ से अजीब सी आवाजें कानों से टकराने लगी। जैसे-जैसे ये आवाजें करीब आ रही थी, खुशियों से फासला उतना ही आगे बढ़ता सा नजर आ रहा था।

जब तक कि कोई इस शोर से बचने के बारे में सोच भी पाता, तब तक ये ज्वार-भाटे की तरह, इस कस्बे पर हावी हो गया। ये कोई आतंकवादी नहीं थे। बस फर्क था तो धर्म का। “हिंद-ूमुसलमान”, और लड़ाई थी, धर्म की।

ये दोनों धर्म इंसानियत के धर्म को लाल कर गंगा में बहाने आए थे। थोड़ी ही देर में काले बादल तो आसमां के इन तारों से छट गए, पर कस्बे को इतना प्रभावित कर गए कि एक-एक तारा टूट कर गिर गया।

अब गिने-चुने 20-25 लोग ही बाकी रह गए थे। चारों ओर लाशों के ढेर थे। दूल्हा बुरी तरह लहू-लुहान एक कोने में पड़ा था। उसके घर वाले भी कहीं-कहीं गंभीर स्थिति में पड़े थे। दुल्हन को वो लोग उठाकर ले गए थे शायद उसका भी वही हश्र किया होगा जो वो यहां कर के गए।

यहां चारों तरफ हृदय विदारक दृश्य था। बचे हुए लोगों की आंखों से खून के आंसू बह रहे थे। बच्चों और बड़ों की अधूरी खुशियों की आवाजें कानों में गूंज रही थी। बचने वालों में वृद्ध और युवक दोनों थे।

युवक बिलख बिलख कर रो रहा था क्योंकि वो अपने परिवार को खो चुका था। वृद्ध ने पास जाकर उसे दिलासा देने की कोशिश की। क्योंकि वृद्ध, लाशों की भीड़ में, युवक की तन्हाई को महसूस कर सकता था। युवक उन्हीं की गोद में सिर रखकर चीख़ चीख़ कर रोने लगा।

युवक ने रोते हुए कहा कि वह अकेला रह गया और वह अकेले जीवित नहीं रह सकता। वृद्ध ने उसके सिर पर हाथ रखकर कहा:

युवक के ज़ख्म ताजा थे पर शायद वृद्ध की बात, वो समझ गया था। अंतः उन्हें परछाइयों को छोड़कर सच्चाईयों की तरफ बढ़ना पड़ा।

Share the post

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!