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क्या हो जब पिकनिक में सामना भूतो से हो जाये

Submitted By Prisha

पिकनिक शब्द का उच्चारण सुनते ही मेरे मन में सागर की लहरों की तरह तरंगे उठने लगती हैं और ये उमंगे, तरंगें भी इतनी तीव्र गति से कि मैं अपने आप को रोक ही नहीं पाती हूं। ये मन को प्रफुल्लित कर देने वाला एक अदभुत शब्द है। क्या हो जब पिकनिक में सामना भूतो से हो जाये?

पिकनिक के बारे में मेरा, एक बहुत अच्छा और मन को रोमांचित कर देने वाला अनुभव रहा है। इस भागम-भाग की दुनिया से बाहर निकलने के लिए, मैंने अपने कुछ मित्रों के साथ पिकनिक पर जाने का कार्यक्रम बनाया।

हर रोज पिकनिक को लेकर, नई योजनाओं के साथ सुबह होती थी। फिर वह दिन भी आया, जब हम सभी तैयार थे, पिकनिक पर जाने के लिए। हम सभी एक बस में रवाना हुए। सभी दोपहर के भोजन के लिए कुछ ना कुछ लेकर गए थे। बस कमी थी तो इस बात की कि खाने को उपयुक्त समय नही मिल रहा था।

भूख के कारण मेरे पेट की आंते मुझे कोस रही थी। पेट में बहुत देर से गुड़-गुड़ की आवाजें आ रही थी। मेरे आसपास के विद्यार्थी इन आवाजों से भ्रमित से महसूस हो रहे थे। पर योजना के मुताबिक तो …….पिकनिक थी ना। तो पहले भोजन करना भी मुनासिफ नही था।

काफी समय के अंतराल के बाद हम हवामहल में पहुंचे। मेरी शक्ल पर बारह बजे हुए थे। इसीलिए खुद ही सब समझ गए थे  कि ये ज्यादा देर भूखी नही रह पाएगी। मेरे हालात देखकर, सभी ने वहां बाहर बैठकर ही भोजन करने का फैसला लिया। भोजन के बाद हम सभी तैयार थे, भ्रमण के लिए।

जैसे ही हम सभी हवा महल के अंदर गए तो सभी भौचक्के रह गए। वहां पर ए.सी. लगे हुए थे। हम सभी कुछ सोच ही रहे थे कि तभी राजा महाराजा और सैनिकों की वेशभूषा में कई लोग हमारे पास आए। उन्होंने हमें हवा महल में चलकर कुछ खाने का आग्रह किया।

राहुल ने कहा, लगता है यह सारी प्रबंध- व्यवस्था होटल के कर्मचारियों द्वारा की गई है। सभी राहुल की बात से सहमत हो गए। हम सभी उनके कहे अनुसार अनुसरण करते जा रहे थे।  तभी उन सैनिकों ने बहुत जोर से ऊंची आवाज में कहा:- बामुलाहिजा होशियार, खबरदार, महाराजाओं के महाराजा, महाराज शेर सिंह पधार रहे हैं।

अब तो हमारी हैरानी की सीमा बिल्कुल ही पार हो रही थी, होटल वालों ने तो पूरा नाटक ही रचा दिया था। तभी एक सैनिक राजा के सामने आता है, पर जैसे ही वह आगे आता है वह लड़खड़ा कर जमीन पर  मुंह के बल औंधे आ गिरता है। ये दृश्य देखकर हम सभी हंसने लग जाते हैं। सभी ठहाके मार मार के और पेट पकड़कर बुरी तरह हंसने लगे।

अचानक एक सैनिक ने गुस्से में तलवार निकालकर कहा, अगर महाराज के सामने किसी ने कोई भी गुस्ताखी की, तो तलवार से उसकी गर्दन काट दी जाएगी। यह सुनकर हमारे होश फाख्ता हो गए और हम सभी एकदम चुप हो गए। इसके बाद हम सभी ने राजा के साथ चुपचाप भोजन किया। पेट भरने के बाद हमने और खाने को मना किया लेकिन हमारे मना करने का सैनिकों पर कोई असर नहीं हुआ।

इतनी मनाही के बावजूद भी, उन लोगों ने तलवार के बल पर हमें और खाना खाने को मजबूर किया। अब हम लोगों की हालत किसी बलि के बकरे से कम नहीं थी जिन्हें मारने से पहले हर तरह के मनोहारी व्यंजनों को खिला खिला कर आधा तो पहले ही मार दिया जाता है।  कुछ देर बाद महाराज ने सैनिकों को आदेश दिया कि इनसे नृत्य करवाया जाए।

ये सुनने में काफी अजीब सी बात थी। इसीलिए हम सभी ने नाचने से मना कर दिया। ये सुनते ही राजा ने सैनिकों को कहा कि सभी को पन्द्रह- पन्द्रह कोड़े लगाई जाए। ये तो सोचने में भी भयावह था इसीलिए हम सभी राजा के चरणों में गिर गए और हमें छोड़ने का आग्रह किया। हम सभी बहुत देर तक गिड़गिड़ाते हुए राजा से गुजारिश करते रहे। लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। घंटों विनती करने के बाद राजा का गुस्सा थोड़ा कम हुआ और दोबारा उन्होंने हमें नृत्य करने को कहा।

अब ना कहने की गुंजाइश तो बची ही नही हुई थी इसीलिए हम सभी ने लगातार चार-पांच घंटे नृत्य किया। अब हम सभी थक कर चकनाचूर हो चुके थे। पर फिर भी उन्होंने हमें नृत्य करने के लिए जोर दिया और हमें सारी रात नृत्य  करने को मजबूर कर दिया। हम सभी किसी पागल से कम नही लग रहे थे। पर जैसे ही रात के 12:00 बजे, वह सभी वहां से गायब हो गए।

यह सब देखकर मेरे मित्रों में से कुछ, अपनी सुध-बुध खो चुके थे। वह अब बेहोश अवस्था में थे। जैसे तैसे रात बिता कर, पस्त हालात में हम वहां से बाहर निकले। बाहर निकल कर हमें लगा कि हमें एक नया जीवन मिल गया है। अभी इस बात की खुशी का पूर्णतया अनुभव भी नही किया था कि वहां एक व्यक्ति नज़र आया  जो कि हमारे लिए अजनबी था।

वह हमें बहुत अजीब तरीके से घूरता हुआ गया और थोड़ी देर बाद वहां घूमने वाले लोगों की भीड़ जमा हो गई। वह सभी हमें चारों तरफ से घेर कर खड़े हो थे। दोबारा किसी मुसीबत का अंदेशा होने लगा था। परेशानी और हैरानी की वजह से हम में से कोई भी उनके घूरने का कारण नहीं पूछ पा रहा था।

फिर थोड़ा झिझकते हुए एक मित्र ने हिम्मत जुटाकर उनसे पूछा कि आप सभी हमें घूर क्यों रहे हैं। हमारा ऐसा पूछना था कि वो और करीब आ गए। अब सबकी बोलती बंद हो चुकी थी। आसमान से गिरे खजूर में अटके जैसा महसूस हो रहा था। काले घने अंधेरे में वो लोग भूत पिशाच जैसे लग रहे थे।

अब तो सभी ने ऊपर चलने की तैयारी कर ही ली थी और अपनी अंतिम सांसे भगवान के नाम कर दी थी। अचानक बादलों से घिरे आसमाँ की परतें सूरज ने अपनी रोशनी से खोलनी शुरू कर दी थी। सूरज की रोशनी से वो सभी धीरे-धीरे वहां से भाग गए और आखिर में वही पहला अजनबी रह गया जो बिल्कुल शुरू में हमसे मिला था।

वह हमारे करीब आया और फिर पीछे चला गया और जोर जोर से हंसा। हम सभी हक्के बक्के उसका मुंह देख रहे थे। फिर उसने बताया कि इस हवामहल में भूत प्रेतों का डेरा है। जो अमावस के दिन यहां आते हैं। ये भूत प्रेत थोड़े से आधुनिक किस्म के हैं। तब हमें सारा माजरा समझ आया। हम सभी खुश थे कि चलो अब हम सब मुसीबत से बाहर थे।

फिर हम उस अजनबी से रास्ते के बारे में पूछने लगे तो वह भी तभी गायब हो गया। फिर तो हम सभी सिर पर पैर रखकर दौड़े और वहां से बाहर आए। अब हम सभी अपने अपने घर पर थे। फिर भी हम भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे कि उन्होंने हमें आत्माओं के साथ भोजन करने और उनसे मिलने का मौका दिया। यह बहुत ही अचंभित कर देने वाली घटना और पिकनिक थी।

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