इश्क़ की कोई भाषा नहीं हैं
शब्दों में क्यों तुम उलझते जा रहे हो
नज़रों से ना पढ़ सको गर प्यार मेरा
इन सफों को क्यों पलटते जा रहे हो
कोई कागज़ नहीं हैं जहाँ पर मैं लिख दूँ
उलझन तुम्हारी जहाँ उलझते जा रहे हो
अभी तो हाथों में हाथ ही थामे
अभी से तुम क्यों सरकते जा रहे हो
तुम्हे महसूस कर लूँ, इजाज़त दो मुझको
सदियां हुई, परखते जा रहे हो
इश्क़ की कोई भाषा नहीं हैं
शब्दों में क्यों तुम उलझते जा रहे हो
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