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क्यों छुप्पे हो, नज़र आ रहे हो तुम

क्यों छुप्पे हो, नज़र आ रहे हो तुम

अँखिओं के झरोखे से
प्रेम भरी तुम्हारी मूरत
दूर नहीं है एक क्षण भी

झूमता लहराता आंचल
मादकता से भरा यौवन
फूलों सी कोमल काया
आँखों से टपकता जोबन

हर क्षण तुमको पुकारा
हर क्षण तुमको है सौपा
बस गए हो तुम रगो में
बह रहे हो लहू बनकर

जागती आँखों का सपना
बंद आँखों में हो तुम
हर स्वास तुम्हारे लिए है
मेरी यादों में हो तुम

फूलों की सुवास लिए
महकते हो तुम आँगन में
खगो की झंकार लिए
चहकते हो तुम आँगन में

क्यों छुप्पे हो, नज़र आ रहे हो तुम

Visit the Profile of Ajay Lilrain. This poem is taken from Ajay Lilrain poetry collection Do Anmane ISBN No: 978-81-8048-135-2, first published in 2009


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