ego

अहंकार एक ऐसा मनोभाव है

अहंकार, अहम, घमंड व इगो एक ऐसा शब्द जिसे जानता हर कोई है लेकिन पहचानता कोई नहीं है। अहंकार एक ऐसा मनोभाव है जिसके बारे में सब पढ़ते है, पढ़ाते हैं ,लिखते हैं ,सुनते हैं, सुनाते हैं लेकिन मानता कोई नहीं है ।न मानने का व न पहचानने का कारण एक ही है -यही भाव जिस का नाम है- “अहंकार”


इस मनोदशा के चलते हैं इस मनोभाव के रहते व्यक्ति अपने विवेक व अपनी बुद्धि से अपना नियंत्रण खो देता है क्योंकि यह भाव किसी मद या नशे के जैसे कार्य करता है। इस भाव में व्यक्ति अपनी सोच पर अपने नियंत्रण नहीं रख सकता। वह सदैव एक ही दिशा में सोचेगा जो उसे उस वाक्य या उस स्थिति में ले जाएगी ,जहां जाकर वह व्यक्ति यह मानता और कहता है कि-” मैं ही सही बाकी सब (सब संसार) गलत “।


अहंकार भाव से ग्रस्त व्यक्ति की एक और खास पहचान वह अपने को दयालु, परोपकारी ,कर्म योगी, धर्म के मार्ग पर चलने वाला, कर्तव्य परायण मानता है और दूसरों को अहंकारी,भ्रष्टाचारी, दुराचारी ,कामचोर व भोगी मानता है।


ऐसे भाव में पड़े व्यक्ति को पहचान कर हम उसे सही मार्ग पर कैसे लाएं, यह एक बड़ा यक्ष प्रश्न बन जाता है। हम उसे सही मार्ग पर ले आएंगे ,यह हमारी भूल होगी। क्योंकि वह तो अपनी मनोदशा के चलते सही दिशा वह सही स्थान पर है। अहंकार से ग्रस्त व्यक्ति सावन के अंधे के जैसा ही होता है उसे हर व्यक्ति खुद को छोड़कर अहंकार से घिरा नजर आता है। इसलिए उससे नाराज न होकर उसके साथ और अधिक मैत्रीपूर्ण भाव से व्यवहार करें । इस मैत्रीपूर्ण व्यवहार को वह व्यक्ति अपनी जीत और आपकी कमजोरी मानेगा , लेकिन समय एक ऐसी औषधि है जिसके चलते वह सही दिशा को जानेगा और आपके द्वारा किए गए प्रयासों को सही मायने में पहचानेगा। तब वह व्यक्ति अहंकार को त्याग कर आपके चरित्र को झुक कर सलाम करेगा।


हो सकता है कि यह लेख लिखते वक्त मेरे मन को इस भाव ने घेर लिया हो, जैसे विज्ञान विषय में शारीरिक विकारों व व्याधियों के पाठ के दौरान उस में विभिन्न व्याधियों में विकारों के लक्षणों को पढ़ाया जाता है। इस पाठ को पढ़ाने से पहले अनुभवी अध्यापक बच्चों को बताता है कि जब आप यह पाठ पढ़ोगे तब आपका ऐसा लगेगा जैसे भी अनेक विकारों में व्याधि से ग्रस्त है। इसी प्रकार अहंकार भाव को लिखते लिखते अहंकार मेरे मन मस्तिष्क पर अपना प्रभाव दिखा रहा हो उसका प्रभाव मन मस्तिक से आगे बढ़कर मेरी कलम या मेरे शब्दों पर आए उससे पहले ही मैं इस लेख को विराम देना चाहूंगा।


इस भाव से दूर रहने का उपाय यह भी हो सकता है कि हम अकेले में स्वयं मूल्यांकन करते रहे अपने को गलत मान कर स्वयं को कटघरे में खड़ा कर देना चाहिए। हंसते रहिए मुस्कुराते रहिए इस लेख से नहीं केवल किस भाव से दूर रहिए।

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