कैसे कविता मैं लिख दूँ
ना तुम हो मेरे
ना मैं हूँ तुम्हारी
ना आकाश है पृथ्वी का
ना पृथ्वी है आकाश की
ना आकाश पृथ्वी छू पाया
ना पृथ्वी आकाश छू पायी
दुनिया वालों
इनकी तड़प तो देखो
तुम्हारी नज़रे कहती है
मिले हुए है यह दोनों
लेकिन इन दोनों से भी तो पूछो
जो कभी ना मिल पाए
शायद
ना ही कभी मिल पाएंगे
कैसे कविता मैं लिख दूँ
ना तुम हो मेरे
ना मैं हूँ तुम्हारी