Submitted by Gagandeep Bhatia
“उठो दोस्त, आखिरी स्टेशन आने वाला है।”
“अरे यार, अभी तो मेरी नींद……पूरी भी नहीं हुई थी”। (मैंने अपने मन मन में सोचा, कौन है ये आदमी)।
नींद में धुंधला धुंधला दिखाई देने वाला वो व्यक्ति मुझे बार-बार कह रहा था, उठो आखिरी स्टेशन आने वाला है। मैंने थोड़ा सा ऊह…हूं…..जैसी आवाजें निकालकर उसे दिलासा दिलाया कि मैं बस उठने ही वाला हूं।
यह दिलासा दिला कर मैं दोबारा सो गया। छोटे बच्चे की तरह सोना मेरी आदत थी और नींद इतनी गहरी कि कोई सोच भी नहीं सकता। ऐसे ही हालात मेरे उस मेट्रो में हो गए थे। नींद भी एक नशीले पदार्थ की तरह है जब तक पूरी ना हो जाए तब तक आदमी, आदमी नहीं होता।
ऐसा नही है कि ये मेरे साथ पहली बार हुआ था। मेरे साथ हमेशा होता था जब तक मेरी नींद पूरी ना हो जाए। मैं ढंग से जाग ही नहीं पाता था। उस दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब मैं अपनी पूरी नींद करके उठा तो मैंने देखा कि पूरी मेट्रो में दूर-दूर तक कोई भी दिखाई नहीं दे रहा है। मेट्रो की खिड़की से बाहर का नज़ारा बहुत ही भयावह था।
हिम्मत न तो मेट्रो के अंदर रहने की थी और न ही बाहर निकलने की। इत्तेफाकन मेट्रो का दरवाजा खुला हुआ था। मैं भागकर मेट्रो से बाहर निकला कि कहीं मैं लेट तो नहीं हो गया घर पहुंचने में। बाहर देखा, तो आधी रात हो चुकी थी। 12:00 बस बजने ही वाले थे। चारों तरफ केवल एक ही चीज थी और वो थी, नील बट्टे सन्नाटा।
काला घुप्प अंधेरा, आजू बाजू में कोई नहीं, केवल मैं और काली रात, यह देखकर मुझे पैरों में तनिक कंपन महसूस होने लगा और धड़कनें भी तेज हो गई। क्योंकि अकेलेपन और अंधेरे से दिल बहुत घबराता था। घबराहट के कारण मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किस तरफ जाऊं। मैं कुछ ज्यादा ही परेशान था क्योंकि ये बिल्कुल गुजरे जमाने के रेलवे स्टेशन जैसा था, जिसमें प्लेटफॉर्म के दूसरी तरफ काले घने पेड़ और झाड़ियां थी।
चारों तरफ अंधेरा होने के कारण वह झाड़ियां बहुत डरावनी लग रही थी। बड़े-बड़े गुच्छेदार पेड़ किसी भूत के साये की तरह लग रहे थे। ऐसे माहौल की वजह से बार -बार दिमाग में ख्याल आ रहा था कि कहीं कोई मुझे पीछे से पकड़ तो नही लेगा। कहीं अचानक कोई आगे तो नही आ जायेगा। अपने दिल को थोड़ा ढांढस बंधाते हुए मैंने अपने कदम मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलने के लिए बढ़ाए।
कुछ ही कदम चलने के बाद मैंने मेट्रो स्टेशन पर ही एक बहुत बड़ा पीपल का पेड़ देखा, जिसके नीचे चबूतरा बना हुआ था। पीपल का पेड़ देखकर मेरी अंदर पेट की आंते वैसे ही सूख गई। बचपन में पीपल के पेड़ को लेकर बहुत सारी डरावनी कहानियां जो सुनी थी। फिर थोड़ा मन में आत्मविश्वास जगा कर मैंने खुद उस रास्ते को पार करने का दृढ़ संकल्प लिया। धीरे-धीरे जैसे ही मैं आगे बढ़ा, मेरी सारी हवा पस्त हो गई।
मुझे पीपल के चबूतरे पर सफेद साड़ी में एक औरत बैठी दिखाई दी, जिसका चेहरा मुझसे दूसरी तरफ था। मुझे बस उसके काले-घने लंबे बाल दिखाई दे रहे थे। अब तो मेरे पैरों तले की जमीन खिसक ही चुकी थी। अपने दिल की धड़कनों को मैं अपने कानों में सुन पा रहा था। मुश्किल से सांस आ रहा थी। हाथ कांपने लगे थे। बस एक मृत शरीर की तरह मैं वहां पर खड़ा हो गया और सोचने लगा कि क्या करूं, क्या ना करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा था?
अंततः मैं वहां से भागने की अलग-अलग प्रकार की योजनाएं दिमाग में सोचने लगा। तत्पश्चात जब तक कि मैं कुछ कर पाता, उससे पहले ही साड़ी पहनी हुई उस औरत ने केवल अपनी गर्दन मेरी तरफ घुमा दी। उसका डरावना चेहरा देखकर लगा कि मेरे शरीर ने अब प्राण त्याग दिए हैं। मुझ में कुछ भी शेष नहीं रह गया था।
मैं पूरा जोर लगा कर चिल्लाने की कोशिश कर रहा था लेकिन मेरे मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। मैं अपनी अंतिम सांसे ही ले रहा था कि अचानक मेरे मन के कोने से आवाज आई कि मैं तो सो रहा हूं और यह केवल एक सपना है। अब मुझे इतना तेज चिल्लाना है कि मेरे घर में आसपास लोग जाग जाए सोए हुए आसपास लोग जाग जाए।
यह सोचकर मैंने एक लंबी गहरी सांस ली और जोर से चिल्लाया। मैं इतना जोर से चिल्लाया लेकिन मेरी आवाज बिल्कुल थोड़ी सी निकली लेकिन मेरे शरीर में से जैसे प्राण निकल गए हो; इस तरह का एहसास मुझे हुआ। मुझ में कोई जान भी नहीं बची थी और अचानक मैं दोबारा सो गया हालांकि मेरे अवचेतन को पता था कि मैं फिर से सो चुका हूं लेकिन मैं फिर से उसी स्थिति में था।
उस औरत के सामने मैं बिल्कुल मरण अवस्था में था लेकिन उस वक्त मेरा दिमाग सक्रिय था जो मुझे बार-बार यह बता रहा था कि मैं अभी भी सोया हुआ हूं और यह केवल एक सपना है तो बेटा अब थोड़ा जोर से चिल्ला ताकि घरवाले उठ सके।
मैंने अपनी पूरी शक्ति के साथ फिर से चीख लगाई और इस बार मेरी आवाज मेरे गले से निकलकर मेरे घर वालों के कानों तक सच में पहुंच गई। मुझे मेरी मां ने जगाया।
मां ने कहा, “क्या हुआ बेटा”?
मैंने कहा, “एक बुरा सपना था।”
यह कहकर मैंने उनको अपनी पूरी सपने की कहानी सुनाई। मां ने पूरी कहानी ध्यान से सुनी और कहा।
बेटा चाहे सपना कोई भी हो, सपने में कभी किसी का चेहरा दिखाई नहीं देता और तुम कह रहे हो कि तुम वह चेहरा भूल नहीं पा रहे हो और ना ही भूल सकते हो।
यह कहकर माने मुझे दोबारा सोने की हिदायत दी। मैं फिर से लेट गया लेकिन अब नींद मेरे आजू-बाजू भी नहीं थी। मैं सोच रहा था कि ऐसा क्या हुआ कि मुझे इस तरह का सपने में सपना आया। बहुत देर तक सोच विचार के बाद मुझे याद आया कि आज ही मैंने इनसेप्शन फिल्म देखी थी जिस जिसमें हीरो को ऐसे ही सपने के अंदर सपने आते हैं।
ऐसा ही मेरे साथ हुआ लेकिन जो कुछ भी हुआ वह बहुत डरावना था और ना ही कभी भूला जा सकता है। यह इतना डरावना था कि मैं लिखने पर मजबूर हो गया। लेकिन एक बात जो मुझे खल रही है कि क्या सच में हमें सपनों में कोई चेहरा नहीं दिखाई देता? जबकि मुझे तो दिखाई दिया था और मुझे अच्छे से याद भी है।