हमारी खामोशी और गुफ्तगू में तुम हो
इंतजार में तुम और आरजू में तुम हो
इतनी दुवाएँ की हमने तुमको पाने की
पास में हो और मेरी जुस्तजू में तुम हो
जब कभी मैं मुस्कुराने लगा हूं बेवजह
अक्सर देखा है के मेरे पहलू में तुम हो
महकते हुए हर आलम में तू शामिल है
महके हुए आलम की खुशबू में तुम हो
तुमसे है रोशन खुशी मेरी ए मेरे “शफी”
सच मेरी हर खुशी की आबरू में तुम हो
II
बिछड़े तो वो दोस्त पुराने नहीं मिले
जैसे वक्त को गए ज़माने नहीं मिले
निकले पंछी जो दानों की तलाश में
लौटे तो पेड़ों पे आशियाने नहीं मिले
साक़ी मिला शराब-ए-मदहोशी मिली
पर तेरी आंखों जैसे मैखाने नहीं मिले
जख्म का इल्ज़ाम लगाना था गैरों पे
मगर जख्म देने वाले बेगाने नहीं मिले
नहीं आना था तेरे दर पर “शफी” को
दिल को ना आने के बहाने नहीं मिले